हर रोज़ यूँ तनहा बिताना कठिन लगता है
आँधी में नदी के पार जाना कठिन लगता है

हो ग़र अनजान रास्ता और लंबा सफ़र हो
हर पल अकेले पार पाना कठिन लगता है

उल्फ़त के दिन हों, किसी से दिल्लगी हो
बिना उनके निभाना कठिन लगता है

रफ़ीक-ए-राह ना हो, न हो संगी न साथी
तो दुनियादारी निभाना कठिन लगता है

रहबर-ए-राह-ए-‘अमल जब हो ना काबिल
तो मंज़िल तक पहुँचना कठिन लगता है

रियाया जो शहों से बात और हालात पूछे
उनको यूँ मूरख बनाना कठिन लगता है

ना कर पाएगा जो मन चंदन सा शीतल
लक्ष्य को फिर भेद पाना कठिन लगता है