महफिलों में ज़िक्र तेरा बार बार क्यूँ न हो
‘चन्दन’ की शीतलता और ‘सुगंध’ हो तुम
मेरी ग़ज़लों में तेरा शुमार क्यूँ न हो…
08 Saturday Oct 2016
Posted ग़ज़ल
inमहफिलों में ज़िक्र तेरा बार बार क्यूँ न हो
‘चन्दन’ की शीतलता और ‘सुगंध’ हो तुम
मेरी ग़ज़लों में तेरा शुमार क्यूँ न हो…
08 Saturday Oct 2016
Posted कविता
inयह भारत क्या है? कौन है ये?क्या यही विध्वंसक सोच है ये?
हिंसा की भाषा, हिंसक कृत्य
ये कैसी सोच, यह कैसा दृश्य
भारत के बच्चों को देते कष्ट
फिर कहो ‘भारत की जय’ स्पष्ट
भारत की परिभाषा किसने सिखलाई
टैगोर की कही बात याद है आई
यह देश केवल धरा नहीं, इसके जन हैं
धरा शरीर मात्र है, ‘आत्मा’ इसके जन हैं
जनता से सम्पूर्ण है होता ये जनतंत्र
भारत की प्रगति का यही एक मंत्र
भारत की परिभाषा देखो ये ‘दिनकर’ का है
‘नहीं स्थान का वाचक, गुण विशेष नर का है ‘
जनतंत्र समृद्ध है होता ‘विमर्श विचारी’ से
यह बनता है यहां के लोगों से, नर नारी से
यह देश संकीर्ण सोच का प्रतीक नहीं
देश नहीं सम्पूर्ण गर ‘विचार’ निर्भीक नहीं