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~ कभी कभी खुछ ख़याल टकराते रहते हैं, आपको उन्हीं खयालों से रूबरू कराने की ख्वाहिश लिए ये ब्लॉग आपकी खिदमत में हाज़िर है

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Monthly Archives: June 2013

इन मासूम सी आँखों में कुछ ख्वाब दो

06 Thursday Jun 2013

Posted by फणि राज in ग़ज़ल

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इन मासूम सी आँखों में कुछ ख्वाब दो
बढ़ते हुए बच्चों के हाथों में किताब दो

उन ख़्वाबों में चलो कुछ रंग भर दें
सूखने से पहले उन पौधों में आब दो

बंजर हो जायेंगे वो सुनहरे खेत चलो
इस जमीन को झेलम और चिनाब दो

टूटते तारों में छुपा है एक नया सूरज
चलो अँधेरे जहां को एक आफताब दो

चेहरे के नूर से चमकती हैं आँखे मेरी
गेसुओं से अपने चेहरे को हिजाब दो

जरा नकाब हटाओ रुखसार से अपने
जहाँ को एक और तुम माहताब दो

मेरी आँखों में अभी भी दम है बाकी
मेरे प्याले में साकी थोड़ी शराब दो

जिससे मिलो ‘चन्दन’ प्यार से मिलो
दुनिया को मुहब्बत तुम बेहिसाब दो

नींद से प्रेम

06 Thursday Jun 2013

Posted by फणि राज in कविता

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neend

प्रिय हो तुम, प्रियतम हो मेरी
तुम स्वप्नों का आधार प्रिये
तुझसे मिलने के बाद प्रिये मैं
सुख दुःख अपना भूल चूका
तेरी इस कोमल छाया में मैं
दुर्गुण अपने भूल चूका
तुझसे मिलने की बेला में मैं
भूला जग का खेल प्रिये
प्रिय हो तुम, प्रियतम हो मेरी
तुम स्वप्नों का आधार प्रिये
जग लाख सताए ताने दे
तुम तनिक रोष न दिखाती हो
हो कैसी कठिन  भी बेला पर
तुम अपने पास बुलाती हो
स्नेह तुम्हारा न होता कम
चाहे दिन हो या रात प्रिये
प्रिय हो तुम, प्रियतम हो मेरी
तुम स्वप्नों का आधार प्रिये
जो दुनिया मैं न देख सका
तेरी संगत उसे दिखाती है
कोई वैद हकीम करेगा क्या
जब कभी तू बैर दिखाती है
किसी और में होगी बात कहाँ
जो तुझमे हैं मेरी बात प्रिये
प्रिय हो तुम, प्रियतम हो मेरी
तुम स्वप्नों का आधार प्रिये
तुम ‘नींद’ ही मेरी प्रियतम हो
तुझसे ही अपना प्रेम प्रिये

कुछ कहने को अश’आर मिलते नहीं हैं

06 Thursday Jun 2013

Posted by फणि राज in ग़ज़ल

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ख्यालों के बादल आये उमड़ के
कलम मेरी क्यूँ चलने पाती नहीं है

बरसने का आलम तो लगता बहुत है
मगर क्यूँ ये बारिश फिर होती नहीं है

कहना बहुत है, कह पाता नहीं हूँ
है काली घटा पे बरस पाती नहीं है

जुबां जैसे मेरी थम सी गयी हो
कुछ कहने को अश’आर मिलते नहीं हैं

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