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~ कभी कभी खुछ ख़याल टकराते रहते हैं, आपको उन्हीं खयालों से रूबरू कराने की ख्वाहिश लिए ये ब्लॉग आपकी खिदमत में हाज़िर है

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Category Archives: शेर-ओ-शायरी

वो कौन है

28 Tuesday May 2019

Posted by फणि राज in शेर-ओ-शायरी, ग़ज़ल

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पस-इ-आइना जो खड़ा है, वो कौन है
वो जो मेरी तरह दिखता है, वो कौन है

वही है, हाँ वही है जिससे मैं हूँ वाकिफ
वो जिसके चेहरे पे शिकन है, वो कौन है

याद है मुझे उसका मुस्कुराता चेहरा
वो जो आज भी शादाब है, वो कौन है

बड़े अदब से मिला करता था कल तक
आज दूर कोने में खड़ा है, वो कौन है

कभी उसके रकीबों में शामिल था मैं भी
जो दुश्मन की तरह देख रहा है, वो कौन है

अजीब होती है ये मज़हब की दीवार ऐ दोस्त
मेरे तेरे दरम्यान डाला जिसने, वो कौन है

चलो तोड़ दें दीवार सभी, फिर साथ हो लें
चले इंसानियत का ये पहला कदम, वो कौन है

नहीं है, न रहेगा अदम से वास्ता ‘चन्दन’ तुझको
चले इंसानियत की राह हमेशा, वो कौन है

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कुरबतों के बाद भी कुछ मस्सला सा लगता है

28 Tuesday May 2019

Posted by फणि राज in शेर-ओ-शायरी, ग़ज़ल

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कुरबतों के बाद भी कुछ मस्सला सा लगता है।
पास हैं इतने मगर इक फासला सा लगता है।

नजदीकियों के समन भी दूरियों का सिलसिला
बावफा है दोस्त फिर क्यूं बेवफा सा लगता है।

दश्त में डूबे हुए हैं, दरिया में भी प्यास है
ये जहां तो अब मुझे कुछ बुझा बुझा सा लगता है।

दिल रकीबों में भी इक अजनबी बन के बैठा है
रेहगुजर का वो अनजाना मुझे सगा सा लगता है

28 Tuesday May 2019

Posted by फणि राज in शेर-ओ-शायरी, ग़ज़ल

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ता-हद्द-ए-नज़र कुछ भी सुझाई नहीं देता
इंसानियत का नाम-ओ-निशाँ दिखाई नहीं देता

उस शय के लिए हो जाते हैं ख़ूं के प्यासे
जिस शय का कोई वुजूद दिखाई नहीं देता

22 Thursday Nov 2012

Posted by फणि राज in शेर-ओ-शायरी

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न हुआ इश्क न सही, कोई महबूब भी मिला नहीं
चलो कम से कम शब्-ए-हिजरा सा तो कोई गिला नहीं

Random…

23 Thursday Aug 2012

Posted by फणि राज in शेर-ओ-शायरी

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ये मेरे दीवानेपन का सुरूर है, बात कोई जरूर है
नज़र तेरी जो दिखे मुझे तो लगे समंदर-ए-नूर है .

मयखाने का रुख किया शराब के लिए
साकी, निगाह-ए-यार ने पीना भुला दिया

 

डूबना ही मुकद्दर है तो समंदर की सी गहारियों में डूबेंगे
वरना उथले पानी में डूब कर मरना तो कोई बात नहीं

हम तो इसी में खुश हैं की जल के रौशनी दे पाए

29 Wednesday Feb 2012

Posted by फणि राज in शेर-ओ-शायरी, ग़ज़ल

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हम तो इसी में खुश हैं की जल के रौशनी दे पाए
दफन भी हो गए तो इस सरजमीं को नमी दे पाए

बला सी ख़ूबसूरत जो आँखे हैं उन्ही की कसम
तेरी वही आँखे थी जो मुझे ये ख्वाब हंसी दे पाए

उसने खेतों में दिन रात खून और पसीने बहायें है
ताकि अपने बच्चों को वो कुछ ग़ज़ ज़मीं दे पाए

वो तो सैयाद है, उसे काम पिंजरों में कैद परिंदों से
कब फडफडाते पंख उसकी आँखों को नमी दे पाए

या खुदा! आज फिर से इंसानियत का क़त्ल हुआ
अब वो वजह ढूंढता हूँ जो तेरे होने का यकीं दे पाए

यूँ ही…

22 Sunday Jan 2012

Posted by फणि राज in शेर-ओ-शायरी

≈ 2 Comments

Facebook के एक मित्र हैं डॉ. फैयाज़ उद्दीन उनसे बातों बातों में चंद अश’आर जुड़ गए, उम्मीद है पसंद आयेंगे. सभी एक दुसरे से अलग से हैं फिर भी पेश-ए-खिदमत है…
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सपनें भी देखें सदा मुस्कराएं खुल के मिलें हम हसें और हसाएं
दिन चार जीने हैं जी भर जियें हम दुःख बाँट लें और खुशियाँ लुटाएं
—
वो मेरा नहीं था न सही उसकी यादें तो मेरी अपनी हैं
जिंदगी में वो नहीं न सही ये ख्वाब मेरे तो अपने हैं
—
उससे मिलता हूँ अपने दिल की वापसी की आस लिए
दिल तो नहीं मिलता हाँ उसे धड़कने का बहाना मिल जाता है
—
तेरी आवाज़ सुन कर धडकनें तेज हो गयी
दिल को जो हाथ लगाया तो वो तेरा निकला
—
बेकार ही मैं तुझे बेवफा मान बैठा था
ये मेरा दिल था जो असल में बेवफा निकला
—
तुम  मसरूफ थे अपनी तनहाइयों में हम भी मजबूर अपनी आवारगी से
पता भी नहीं चला कब तबाह हो गए रिश्ते हमारे हमारी ही बेचारगी से
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